ग्रहा राज्यं प्रयच्छन्ति
ग्रहा राज्यं हरन्ति च ।
ग्रहैर्व्याप्तमिदं सर्वं
त्रैलोक्यं सचराचरम् ।।
यह सम्पूर्ण जगत ग्रहों के अधीन है । ग्रह मनुष्य को राजा भी बना देते हैं और भिखारी भी ! अतः ग्रह सदैव पूजनीय है ।
जो मनुष्य अज्ञानतावश ज्योतिष को नही मानते हैं वे कूप में पड़े हुए मेंढक की भाँति होते हैं जिन्हें पूरा संसार उस कुएँ में ही दिखाई देता है।
ग्रहों की विस्तृत व्याख्या यह ज्योतिष शास्त्र एक विज्ञान ही है जिससे सृष्टि के समस्त भावी क्रिया-कलापों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है ।