अर्थात्:-
जो शास्त्र विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, उसे न तो सिद्धि, न सुख और न ही मरणोपरांत परमगति की प्राप्ति हो पाती है ।
अतः किसी को क्या करना चाहिए और क्या नही करना चाहिए इसके लिए शास्त्र प्रमाण हैं, कोई व्यक्ति-विशेष कदापि नहीं ।